चोटी की पकड़–101
बत्तीस
घटना क्या, अनहोनी हो गई। मुन्ना को ख़जांची का डर था। जमादार भी बचत चाहते थे। इसी से उलझते गए। बेधड़क बढ़े। फँसे सिपाहियों ने रानी का पल्ला पकड़ा।
निगाह धर्म पर थी। तिजोड़ी के गाड़े जाने पर सिपाहियों की नसें ढीली पड़ी। एक ने डूबते स्वर से कहा, "रानी से राजा का सितारा बुलंद है।"
मुन्ना ने कहा, "गई, चलते ठोकर लगी, ईंट दूसरे की रखी है, वह रानी का ही आदमी है, नादानी कर रहा है; न इधर का होगा न उधर का। मुमकिन, बदला चुकाने को रानी ने दूसरा हथियार चलाया हो।
धीरज छोड़ने की बात नहीं; कल-परसों तक आज का अँधेरा न रहेगा। अगर कहो कि इसके लिए सज़ा होगी, तो काँटा न लगेगा। सब लोग बाल-बाल बच जाएंगे। रुपए भी मिलेंगे। अभी साँस काफी है।"
सिपाही खुश हो गए। सबको अपनी-अपनी जगह जाने के लिए मुन्ना ने कहा। कहा, "रानी का हाल मालूम हो तो जी में जी आए।" यह कहकर रात-ही-रात नयी कोठी की तरफ चली।
जहाँ दासियाँ सोती हैं, वहीं घुसकर, एक बग़ल लेट रही। नींद नहीं आई। दूसरे को बहलाने से अपना जी नहीं मानता। तरह-तरह की उधेड़-बुन से रात कटी।
पौ फटी कि उठकर बुआ के महल के लिए चली। नयी कोठी में शोर था कि सूरज की किरन के साथ जहाज खुल जाएगा। जागीरदार साहब कलकत्ता रवाना हो रहे हैं।
मुन्ना ने एक कहार को तैनात किया कि जागीरदार साहब के साथ कौन-कौन जाता है, देख आए, रानी जी का हुक्म है।
कहार मुस्कराया। कहा, "वे तो जाएँगी ही।"
"कौन?"
"कौन हैं जो गाती हैं?"
"और कौन-कौन जाता है; खास तौर से यह देखना, कौन-कौन औरत जाती है; उसके साथ एक ही बाँदी है, और भी कोई यहाँ की बर्बादी जाती है या नहीं। रानी साहिबा इनाम देंगी। समझ गया?"
"रानी साहिबा अभी तक चाहती हैं। मैंने अरई कहारिन को छेड़ दिया, कहा, तेरी शक्ल उससे मिलती है। उसने कह दिया। वह एक पंदरहीं नहीं बोली।
अरई के लिए माफी मँगा ली, तब दम लिया। सो भी तब जब अबकी तनख्वाह से गुच्छी-करनफूल बनवा देने का कौल करा लिया।" कहकर मटरू हँसा। अपनापे से पूछा, "मुन्ना तेरी कैसी कटती है?"
"फिर तो नहीं माफी माँगेगा?''